बिहार में विपक्ष राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर सत्ताधारी पार्टियों को घेरती रही है अब फिर राज्य पुलिस का रिपोर्ट आया है कि राज्य में पिछले वर्ष की पहली तिमाही की तुलना में इस साल डकैती, लूट, दुष्कर्म और अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार के मामलों में थोड़ी कमी दर्ज की गई है. बिहार राज्य पुलिस मुख्यालय के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं. हालांकि हत्या के मामलों में वृद्धि देखी गई है.
पुलिस ने जारी किया आंकड़ा
पुलिस मुख्यालय से इस साल के पहली तिमाही के जारी आंकड़े बताते हैं कि 2022 के मार्च महीने तक राज्य में 679 हत्याएं हुई है, जबकि पिछले साल इसी
समयावधि में राज्य के विभिन्न थानों में 640 हत्या के मामले ही दर्ज किए गए थे. इस तरह देखा जाए तो पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष हत्या की घटनाओं में छह फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है है.
पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों पर विश्वास करें तो इस वर्ष मार्च महीने तक राज्य भर में डकैती के 69, लूट के 631 तथा दुष्कर्म के 317 मामले दर्ज किए गए हैं, जबकि पिछले वर्ष मार्च तक डकैती के 72, लूट के 665 और दुष्कर्म के 357 मामले दर्ज किए गए थे.
पुलिस का दावा है कि अनुसूचित जाति और जनजाति अत्याचार के मामलों में कुछ कमी दर्ज की गई है. पिछले वर्ष जनवरी से मार्च तक एससी-एसटी अत्याचार के 1548 मामले विभिन्न थानों में दर्ज किए
गए थे जबकि इसी समयावधि में इस संबंध के 1385 मामले ही दर्ज किए गए हैं ये आंकड़े डराने वाले है इस रिपोर्ट से यह साफ है की पूरे प्रदेश में अपराध अपने चरम पर है और अपराधियों में पुलिस एवं कानून का डर समाप्त हो चुका है इसलिये अपराधियों का दुस्साहस बढ़ा हुआ एवं जनता खौफजदा है शहर से लेकर गांव तक लोग बैंकों से लेकर मुख्य चौक चौराहे तक मे सुरक्षित महसूस नहीं करते एक तो महंगाई और बेरोजगारी के वजह से अपराध के साथ साथ अपराधियों की संख्या भी दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है विपक्ष इस मुद्दे पर आगे सरकार को घेरेगी इसमे कोई शक नहीं है पुलिस का मुख्य कर्तव्य शराबियों और शराब तस्करों को सूंघने रह गया हो तो उक्त आंकड़े की उम्मीद सबको पहले से ही लगी है रोज शहरों का ख़बर जघन्य अपराधों से भरे पड़े होते है लेकिन लोगों को सुरक्षा देने और कानून पर भरोसा बढ़ाने मे सरकार और पुलिस दोनो विफल है।
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